Swar Vigyan

हमको जीने के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है और ऑक्सीजन जब हमारे शरीर मे आवागमन करती है तब हम इसे साँस कहते है ।परंतु साँस लेना भी एक विज्ञान पे आधरित है जी हाँ  स्वर विज्ञान एक ऐसा विज्ञान है जिसकी सहायता से हम अपने जीवन मे आने वाली घटनाओं या मुशिकलों को कम या बदल सकते हैं।

        माना जाता है कि स्वर विज्ञान का ज्ञान  सर्वप्रथम शिव जी ने पार्वती माता को दिया था और ये भी बताया था कि जो व्यक्ति स्वर विज्ञान का अनुसरण करके  कर्म करता है ,ग्रह नक्षत्र उसके अनुकूल हो जाते हैं।

आज हम इस पोस्ट में जानेंगे कि स्वर विज्ञान क्या है? और  हम कैसे अपने जीवन को प्रभावित कर सकते हैं ।मनुष्य अपनी नाक का इस्तेमाल स्वांस लेने के लिए आजीवन करता रहता है पर वो स्वर विज्ञान से अनिभिज्ञ है ।चलिये जानते है स्वर विज्ञान क्या है?


स्वर विज्ञान

हमारे शरीर में नासिका द्वारा स्वाँस के अंदर जाने और बाहर निकलते समय जो अव्यक्त ध्वनि निकलती या होती है उसे स्वर कहते हैं और ये निकलने वाली ऑक्सीजन या स्वांस स्वर विज्ञान पर आधारित होती है। स्वर तीन प्रकार के होते हैं-

1-सूर्य स्वर / पिंगला नाड़ी

                                                 जब हमारी सांस नाक के दाहिनी नासिका से बाहर निकलती है तब सूर्य स्वर चल रहा होता है।इसका स्वभाव गर्म होता है इसको पिंगला नाडी भी कहते हैं।जब ये स्वर चलता है तो हम बहुत आवेग में होते हैं ,हमको क्रोध या गुस्सा भी आता है।

2-चंद्र स्वर / इड़ा नाड़ी

                                                    जब हमारी सांस नाक के बाँयी नासिका से बाहर निकलती है तब चंद्र स्वर चल रहा होता है।इसका स्वभाव ठंडा होता है। इसको इड़ा नाडी भी कहते हैं।
इस स्वर के चलने से  हमको आलस ,कमजोरी लगती है।

3-सुषुम्‍ना नाड़ी

जब हमारे दोनो स्वर एक साथ चलते है या यूँ कहे कि दोनों नासिकाओं से स्वांस का आवगमन होता है तब हमारा सुषुम्‍ना स्वर चल रहा होता है ।ये स्वर अध्यात्म का प्रतीक माना जाता है।

अब प्रश्न उठता है हमारा कौन सा स्वर किस समय हो ताकि हमे उसका पूरा लाभ मिल सके ।

अगर हम सही समय पर सही स्वर का उपयोग करते हैं तो इच्छित कार्यों को पूरा करने में सफल होते हैं।
अब सवाल आता है कि कब कौन सा स्वर होना चाहिए या कब किस स्वर का उपयोग करें ?

सूर्य स्वर का उपयोग या समय

भोजन करते  समय ,पढ़ाते समय ,मेहनत वाला काम करते समय,व्यायाम करते समय ,शौच करते समय ,नहाते समय ,सर्दी और बारिश आदि में सूर्य स्वर चलना या होना चाहिए।

चंद्र स्वर  का उपयोग या समय

गर्मी लगने पर चंद्र स्वर, थकावट में,लू चलने पर,मूत्र क्रिया (पेशाब) करते हुए,यात्रा करते समय , भजन करते समय,शाम के समय आदि में आपका स्वर चंद्र स्वर होना चाहिए।और अगर आपका स्वर विपरीत हो तो उसे आप बदल लीजिये।

सुषुम्‍ना स्वर का उपयोग या समय

योग करने के लिए  सबसे उपयुक्त स्वर सुषुम्‍ना स्वर है ।सुषुम्‍ना नाड़ी या स्वर सांसारिक कामो के लिए नही है अर्थात हमे इसका उपयोग भक्ति साधना ,पूजा पाठ ,पार्थना और योग में करना चाहिए।

जैसा कि हम सब जानते है कि हिन्दू कैलेन्डर के एक महीने में 2 पखवार होते हैं और 1 पखवार में 15 दिन होते हैं।

कृष्ण पक्ष

              महीने के पहले 15 दिन का  पखवार, जिसमे पूर्णिमा के बाद  एकम को कृष्ण पक्ष कहते है 

कृष्ण पक्ष में होने वाला स्वर

तो कृष्ण पक्ष के एकम में सुबह उठने पर  आपका स्वर यदि  सूर्य स्वर है और यह स्वर 1 घंटे तक रहता है, तो पूरा पखवारा या पूरे 15 दिन आपके लिए शुभ होंगे ।और अगर आपका सूर्य  स्वर आधे घंटे तक रहता है तो आपके सात दिन शुभ और 7 दिन अशुभ हो सकते हैं।
   
तो कृष्ण पक्ष के एकम को आपका स्वर सूर्य स्वर होना चाहिए।

शुक्ल पक्ष

               महीने के दूसरे  15 दिन का पखवार, जिसमे आमवस्या के बाद एकम को शुक्ल पक्ष कहा जाता है

शुक्ल पक्ष में होने वाला स्वर

तो शुक्ल पक्ष के एकम में सुबह उठने पर  आपका स्वर यदि  चंद्र स्वर है और यह स्वर 1 घंटे तक रहता है, तो पूरा पखवारा या पूरे 15 दिन आपके लिए शुभ होंगे ।और अगर आपका चंद्र  स्वर आधे घंटे तक रहता है तो आपके सात दिन शुभ और 7 दिन अशुभ हो सकते हैं।

तो शुक्ल पक्ष के एकम को आपका स्वर चंद्र स्वर होना चाहिए।

लम्बे समय तक रात्रि में लगातार चन्द्र स्वर चलना और दिन में सूर्य स्वर चलना, अशुभ स्थिति का सूचक होता है।

कौन सी तिथि को कौन स स्वर चलना चाहिए –

तिथि से जानिए स्वर की शुभता –

कृष्णपक्ष की प्रतिपदा दायां स्वरशुक्लपक्ष प्रतिपदा बायां स्वर
कृष्णपक्ष की द्वितीया दायां स्वरशुक्लपक्ष द्वितीया बायां स्वर
कृष्णपक्ष की तृतीया दायां स्वरशुक्लपक्ष तृतीया बायां स्वर
कृष्णपक्ष की चतुर्थी बायां स्वरशुक्लपक्ष चतुर्थी दायां स्वर
कृष्णपक्ष की पंचमी बायां स्वरशुक्लपक्ष पंचमी दायां स्वर
कृष्णपक्ष की षष्ठी बायां स्वरशुक्लपक्ष षष्ठी दायां स्वर
कृष्णपक्ष की सप्तमी दायां स्वरशुक्लपक्ष सप्तमी बायां स्वर
कृष्णपक्ष की अष्टमी दायां स्वरशुक्लपक्ष अष्टमी बायां स्वर
कृष्णपक्ष की नवमी दायां स्वरशुक्लपक्ष नवमी बायां स्वर
कृष्णपक्ष की दशमी बायां स्वरशुक्लपक्ष दशमी दायां स्वर
कृष्णपक्ष की एकादशी बायां स्वरशुक्लपक्ष एकादशी दायां स्वर
कृष्णपक्ष की द्वादशी बायां स्वरशुक्लपक्ष द्वादशी दायां स्वर
कृष्णपक्ष की त्रयोदशी दायां स्वरशुक्लपक्ष त्रयोदशी बायां स्वर
कृष्णपक्ष की चतुर्दशी दायां स्वरशुक्लपक्ष चतुर्दशी बायां स्वर
अमावस्या पर दायां स्वरपूर्णिमा पर बायां स्वर

स्वर बदलने के उपाय

जब स्वर इच्छा या समयानुसार न चले तब स्वर को इच्छानुसार बदल लेना चाहिए ।कुछ उपाय हैं जिनको करने से आप अपने स्वर को अपने समय या लाभ के अनुसार परिवर्तित या बदल सकते है

1 -जो स्वर आपको चाहिए उसके अपोज़िट साइड करवट लेकर लेट जाइये आपका स्वर बदल जायेगा।

2-एक  स्वर से दूसरे स्वर में  बदलने के लिए जो स्वर चल रहा हो उसी तरफ के घुटने से हिप बॉल को 10 से 15  मिनट तक दबायें स्वर बदल जायेगा।

3- अनुलोम विलोम करने से भी स्वर बदल जाता है।

4-जो स्वर चलता हो, उसको थोड़ी देर तक दबाये रखने से, स्वर बदल जाता है ।

5-जो स्वर बंद करना हो, उधर गर्दन को घुमाकर ठोडी पर रखने से कुछ मिनटों में वह स्वर बंद हो जाता है।

6-कपाल-भाति और नाड़ी शोधन प्राणायाम से सुषुम्ना स्वर चलने लगता है

नोट-योग करने के लिए अर्थात सुषुम्‍ना स्वर के लिये भ्रातसिका आसान करें

स्वर विज्ञान के  अन्य उपयोग

जब हमे किसी व्यक्ति से कोई बात मनवानी हो या अपना काम कराना होता है । तब आपका  जो स्वर चल रहा हो वह व्यक्ति उसी स्वर की तरफ होना चाहिए।

शत्रुओं को हमेशा अपने चलने वाले स्वर के विपरीत दिशा में रखना चाहिए।

घर से बाहर निकलने से पहले जो स्वर चल रहा हो वही पैर पहले बाहर निकाले।

ऑफिस या अपने डेस्टिनेशन पर पहुँचने पा जो स्वर चल रहा हो उसी तरफ का पैर पहले रख कर प्रवेश करें।

गर्मी सम्बन्धित रोगों ओर  बुखार के समय चन्द्र स्वर को चलाया जाये तो बुखार शीघ्र ठीक हो सकता है।

भूख के समय जठराग्नि, आरोग्य आपका भोग के समय कामाग्नि और क्रोध, उत्तेजना के समय अधिक मानसिक गर्मी होती है, ऐसे समय चन्द्र स्वर को सक्रिय रखा जाये तो उन पर सहजता से नियंत्रण पाया जा सकता है

दिन में सूर्य के प्रकाश और गर्मी के कारण सामान्यतः शरीर में भी गर्मी अधिक रहती हैं। इस लिए  सूर्य स्वर से सम्बन्धित कार्य करने के अलावा जितना ज्यादा चन्द्र स्वर सक्रिय होगा उतना स्वास्थ्य अच्छा होता है।

इसी प्रकार रात्रि में दिन की अपेक्षा ठण्डक ज्यादा रहती है। चांदनी रात्रि में इसका प्रभाव और अधिक बढ़ जाता है। इस लिए  उसको संतुलित रखने के लिए सूर्य स्वर को अधिक चलाना चाहिए।

जिन व्यक्तियों के दिन में चन्द्र स्वर और रात में सूर्य स्वर स्वभाविक रूप से अधिक चलता है वे मानव दीर्घायु होते हैं।

स्‍वर को तत्‍वों के आधार पर बांटा भी गया है। हर स्‍वर का एक तत्‍व होता है।


कौन सा तत्व है इसको जानने के लिए  इड़ा या पिंगला नाड़ी (बाई अथवा दाई नासिका) से निकलने वाले वायु के प्रभाव से नापा जाता है।

16 अंगुल हो तो पृथ्‍वी तत्‍व

12 अंगुल हो तो जल तत्‍व

8 अंगुल हो तो अग्नि तत्‍व

6 अंगुल हो तो वायु तत्‍व

3 अंगुल हो तो आकाश तत्‍व होता है।

यह तत्‍व हमेशा एक जैसा नहीं रहता। तत्‍व के बदलने के साथ फलादेश भी बदल जाते हैं।

जैसे जब हमारा कोई भी स्वर 16 अंगुल का होता है तो जिस कार्य या उसकी  कामना हम करते है वो पूर्ण हो जाता है।

और  जब हमारा कोई भी स्वर 3 अंगुल का होता है तो जिस कार्य या उसकी  कामना हम करते है वो पूर्ण नही होता या उसमे काफी कठिनाई आती है।

नोट -स्वर विज्ञान पर यह लेख विनय जी के  द्वारा दिए गए  ज्ञान  तथा स्वर विज्ञान के अध्यन से प्रेरित है ।


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